गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

शिवपुरी 2023 वर्षफल

*आज है शिवपुरी का जन्म दिन  01-01-2023 रविवार* 
19 01 1920 को जन्मी शिवपुरी  अब होने जा रही है 103 वर्ष की* 
कभी “ *शियापुरी”कभी “सीपरी”कभी शिवपुरी तो कभी कुछ और…..!* जैसे-जैसे समय बदलता रहा वैसे- वैसे शिव की पावन नगरी शिवपुरी का नाम समय-समय पर परिवर्तित होता रहा। यदि मुगलों के समय में “सियापुरी” रहा तो किसी अन्य युग में “सीपरी” हो गया।लेकिन सिंधीया राजवंश ने वर्ष 5 अक्टूबर 1919 को जारी किये एक गजट नोटिफिकेशन के द्वारा यकुम जनवरी अर्थात 1 जनवरी 1920 से इस प्यारी सी नगरी का नाम” शिवपुरी “घोषित किया गया था और तब से आज तक यह खूबसूरत नगरी 102 साल की हो गयी है। कुछ वर्षों पूर्व मिले गजट नोटिफिकेशन के दस्तावेजों में आधार पर इसकी खोज की गई और आज यह खूबसूरत नगरी अपने नाम के आधार पर 102 वसंत देख चुकी है ।समय दर समय कभी इस नगरी का उत्थान हुआ तो कभी विनाश के कगार पर भी रही किंतु यह बात भी सच है कि विकास से पहले विनाश भी एक अनवरत प्रक्रिया रही है सो अब फिर यह नगरी उन्माद की ओर अग्रसर है
 *डॉ विकास दीप शर्मा ज्योतिषचार्या श्री मंशापूर्ण पुजारी के अनुसार शिवपुरी* का जन्म 1919 मे जारी नोटिफिकेसन के अनुसार 01 जनबरी 1920 को सीपरी का पुराना नाम बदलकर नया नाम शिवपुरी रखा गया | जो बाद मे यहा का स्थायी नाम शिवपुरी हो गया |
नया साल, नई खुशियां, नए सपने, नए अरमान और नए संकल्प लेकर आता है। कैसा रहेगा वर्ष 2023 शिवपुरी के विकास के लिए , यह देखने के लिए हम निरंतर प्रयास मे रहते है |  शिवपुरी की जन्म कुंडली मे उच्च का गुरु है ओर सूर्य की दशम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने से   सिंधिया राजवंश की कृपा हमेशा शिवपुरी पर होने से यह शहर देश विदेशों तक अपने नाम की ख्याति प्राप्त किये हुए है । एकादश भाव में उच्च का गुरु के प्रभाव शिवपुरी में धर्म छेत्र के विस्तार से ही शहर का विकास होगा | शिवपुरी को धर्म की पूरी भी कह सकते है | एकादश गुरु के प्रभाव से सज्जनों और श्रेष्ठ व्यक्तियों की संगति करने वाले व्यक्ति हैं। मेदिनी ज्योतिष अनुसार कुण्डली में  दशम भाव राजा का होता है  ओर चतुर्थ भाव प्रजा या जनता का एकादश भाव राज परिवार के मुखिया का माना गया है । गुरु इस भाव मे उच्च का होने से शिवपुरी के लिए सबसे बड़ी सौभाग्य की बात यह है कि यह शहर राजाओं की कृपा से ओर राज परिवार से जुड़ा होने से नवीन योजनाएं लाकर प्रजा को दी जाती रही है । प्रजा या जनता के हित में कार्य पूर्ण मेहनत और ईमानदारी के साथ , धर्मोचित कर्म किये जाते है । शिबपुरी के विकास के लिये राज्य से लेकर केंद्र तक सत्य के लिए लड़ाई लड़ना ओर विकास के लिए सदैव तैयार रहना । शिवपुरी विधायिका का सुचारू ओर व्यवस्थित नीतियों से , अनुभव एवं छ्मताओ  से शहर की प्रगति होना यह उच्च गुरु और दशम सूर्य का शुभ परिणाम माना गया है । पराकर्म भाव के राहू शुक्र — बुध के साथ होने से यहा धर्म  छेत्र के कार्यो से लाभ होगा |शुक्र बुध के प्रभाव से पर्यटक छेत्र से शिवपुरी का नाम देश विदेश में विख्यात होगा | शुक्र कला कारक है और बुध के प्रभाव से हरियाली और प्राकर्तिक सौंदर्य , विस्तार को बढावा देगा | धर्म नगरी भी कही जा सकती है | शिवपुरी की कुंडली में चतुर्थ भाव में सूर्य के प्रभाव से राजाओ का वर्चस्व रहेगा ओर राजाओ द्वारा ही विकास की धारा भी शिवपुरी पर सदैव बनी रहेगी | *पं.डॉ विकास दीप शर्मा ज्योतिषचार्या के अनुसार शिवपुरी को राजा या सरकार के द्वारा विशेष नाम, सम्मान और लाभ मिलेगा।* श्रीमान और राज कुलीन लोगों से शहर की उन्नति होगी। राजा द्वारा शहर की आशाओं और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने मे आपकी सहायता करेंगे। चापलूसों के कारण विकास के मार्ग अवरुद्ध होंगे लेकिन अच्छे गुणी लोगो की सलाह कार्य उत्तम और फायदेमंद रहेगी राजा द्वारा किए गए उत्तम कार्यों से समाज मे उनका नाम होगा और श्रेष्ठता भी बढेगी। अर्थलाभ और धन की प्राप्ति होगी। शिवपुरी एक धर्म छेत्र  से पूर्ण एक आध्यात्मिक  शहर हैं। यहां आद्यात्मिक स्तर का लाभ जल्दी मिलेगा । 2023  से  आमदनी के कई श्रोत बनेंगे | जनता कारक चतुर्थ भाव का स्वामी चन्द्र केतु के साथ होने से जनता का मन पल पल बदलता रहेगा | शिवपुरी की कुंडली में लग गत मंगल के प्रभाव से शहर के आकर्षण में कुछ कमी आ जाती है । पराक्रम की बृद्धि होती है, मगर भौतिक सुखों का अभाव बना रहता| बुध राहु का प्रभाव व्यवसाय के छेत्र में भी कठिनाइयां आती हैं शहर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्षों का मुकाबला करता हुआ बढ़ता है ।
शिवपुरी  की कुंडली में वर्तमान मे  चल रही है  बुध की महादशा ( शहर की दशा ओर दिशा परिवर्तित होंगी )* 
शिवपुरी कुंडली मे कन्या  लगन का मालिक बुध महत्पूर्ण ग्रह की महादशा समाजिक , आर्थिक और प्रजा सुख इत्यादि घटनाओं की ओर संकेत देता है । कन्या लग्न ओर मंगल का लग्न गत प्रभाव प्रजा को दुखी बनाता है । रोजगार  की समस्या , स्वास्थ्य सुविधा की कमी, चोरी, जमीनी विवाद, अग्निकांड , गैर कानूनी धंधे उपरोक्त समस्याओं से ग्रसित रही । 
 *अंकज्योतिष शास्त्र के अनुसार 2023 का मूलांक 5 है इस अंक पर बुध ग्रह का प्रभाव होता है। यानी अंक 5 बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।* अंक 5 वाले व्यक्ति लोगों से सरलता से मित्रता कर लेते हैं। साथ ही वह एक साथ कई कार्य कर सकते हैं। साल 2023 का अंक 7 और मूलांक 5 संभव है यानी इन दोनों अंकों में न तो मित्रता है और न ही शत्रु हैं। इसीलिए साल 2023 मूलांक 5 वालों के लिए शानदार साबित होगा। जीवन के सभी क्षेत्रों में आपको सफलता मिल सकती है। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलने की संभावना है। धन के मामलों के लिए भी ये साल अनुकूल है, शिवपुरी की मेष राशि के लिए मंगल उनके स्वामी होते हैं, वही गुरु और शनि योगकारक ग्रह माने गए हैं। साल की शुरुआत में शनि 17 जनवरी को कुंभ राशि में आकर अपने लाभ स्थान से गोचर करेंगे। साल के मध्य में देवगुरु बृहस्पति 22 अप्रैल 2023 को मेष राशि में गोचर कर आपके लग्न में ही होंगे और साल के उत्तरार्ध में राहु मीन राशि में और केतु कन्या राशि में 30 अक्टूबर 2023  को प्रवेश करेंगे। मेष राशि के अनुसार  शिवपुरी  के लिए यह साल काफी अच्छा रहने वाला है। ग्रहों की चाल इस बात का संकेत कर रहे हैं कि इस बार  कुछ अच्छे अवसर मिलने वाले हैं और अगर आप उन अवसर का फायदा उठाते हैं तो आपको ऊंचाइया छूने से कोई नहीं रोक पाएगा। 
जनवरी 2023  में लग्न में राहु, सूर्य भाग्य और शनि दशम में होंगे। साल की शुरुआत में ही आपको भाग्य का साथ मिलने वाला है। इसके अलावा शासन  द्वारा की गई योजनाए  सफल होगी। शिवपुरी पर भगवान शिव की अप्रत्यक्ष  कृपा होने से सफलता ओर श्रेष्ठ जनो का सम्मान होगा। राहु लग्न में होने से उच्च अधिकारी वर्ग को थोड़ा दिशाहीन करने का भी काम करेगा इसलिए उत्तम जनों की सलाह पर सोच समझकर काम करना होगा। 17 जनवरी 2023 के बाद जब शनि लाभ स्थान में प्रवेश करेंगे  तो राजनीति से जुड़े लोगों के लिए यह गोचर बहुत ही शुभ रहने वाला है। नेताओ को अपने उच्च अधिकारियों का सहयोग प्राप्त होगा।

 *फरवरी 2023  माह में मंगल और शुक्र की चाल अनुकूल होगी।* वाणी भाव में मंगल और लाभ में शुक्र भौतिक सुख सुविधाओ को देने वाले रहेंगे । रचनात्मक ओर सजावट सुंदरता की ओर  विशेष कारी सम्पन्न होंगे |  युवा वर्ग के प्रेम प्रसंग ज्यादा देखने को मिलेंगे इस महीना मे  कवि , लेखन,कला से जुड़े लोगों के लिए भी बढ़िया होगा। जो महिलाए फैशन और ग्लैमर के फील्ड में काम कर रही है उन्हें इस समय फायदा होगा। इस समय जो स्त्री जातक अपना काम शुरू करना चाह रही है उनको सरकार से मदद मिलेगी।
 *मार्च 2023  के महीने में मंगल देव मिथुन राशि में गोचर करेंगे* तो शहर में कई  बड़े बदलाव आएंगे। मंगल का गोचर पराक्रम भाव में आने से राजनीतिक का सहयोग व नए काम की शुरुआत होगी। कारोबारी सिलसिले में सफलता लाभ होंगे इस समय गुरु की दृष्टि भी चौथे भाव पर आएगी जिससे शहर मे किसी  बड़े धार्मिक या मांगलिक कार्य का आयोजन हो सकता है। जमीनी मामलों में बड़ा कार्य फेरबदल होगा । 
अप्रैल 2023 के अंत मे देव गुरु बृहस्पति लग्न से ही गोचर करेंगे जिसके प्रभाव से शहर के  व्यक्तित्व में एक अलग ही प्रकार का निखार आएगा। शेयर बाजार से बढ़िया मुनाफा होगा। इस समय सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे जातक सफल होंगे। । इस गुरु के प्रभाव से शहर मे उन्नति ओर रोजगार वृद्धि संभव है। राजा के माध्यम से आपका कोई नया काम शुरू हो सकता है।
 *मई-जून 2023 मे शुक्र और मंगल के प्रभाव के कारण बड़ी संपति पर नवीन निर्माण काम  शुरू हो जाएगा* | इस समय आर्थिक स्थिति को देखकर चलना होगा। लग्न का राहु और लाभ भाव में बैठे शनि की पंचम पर दृष्टि  राजकार्य मे थोड़ी अड़ियल रवैये को जन्म दे सकती है। लग्न में उच्च के सूर्य का गोचर राहु से युति कर ग्रहण दोष का निर्माण करेगा जिससे सरकारी काम से जुड़े लोंगो को कठिनाई आ सकती है। इस समय आपके अहंकार में वृद्धि हो सकती है। मंगल को युद्ध का देवता माना गया है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण दोनों ही इस बार मंगलवार को हुए हैं जिसके कारण ज्योतिष अनुमान है कि यह आने वाले समय में विभिन्न देशों के बीच भूमि विवाद को जन्म दे सकता है। भारत की भी अपने पड़ौसी देशों के साथ सीमा विवाद के चलते सशस्त्र झड़प हो सकती है। देश पड़ौसी देशों के साथ किसी छिटपुट युद्ध में भी उलझ सकता है। अखबारों में भी आए दिन भूमि विवाद के चलते हिसंक घटनाओं की खबरें पढ़ने को मिलेंगी। जिनकी कुंडली में मंगल ग्रह प्रबल है, उन्हें 2023 मे संभाल कर काम करना होगा |

 *जुलाई अगस्त 2023 के बाद सूर्य बुध और अनुकूल बृहस्पति के कारण कोई  महत्वपूर्ण कार्यो का संपादन होगा*  कोई बड़े कार्य का शुभारंभ होगा । व्यापारी वर्ग के जातकों के लिए समय बढ़िया रहेगा। 
 *सितंबर और अक्टूबर 2023  में शिवपुरी के भविषय  भविष्य को लेकर बड़ी रूपरेखा तैयार होगी।* राहु का गोचर आपके लग्न से हटकर 12वें भाव में आ जाएगा और आप गुरु चांडाल योग से भी मुक्त हो जाएंगे। बृहस्पति की दृष्टि वित्त से जुड़े मामलों में आपको सफल करेगी। नवीन कार्यो मे ऊर्जा प्रदान करेगी | 
 *नवंबर-दिसंबर 2023 मे राहु का गोचर केंद्र से लाभ और साल के अंत में सुख प्रदान करेगा* । इस समय शिवपुरी से  नौकरी में विध्यार्थी  बढ़िया प्रदर्शन करने में सफल होंगे। एकादश भाव के शनि,लग्न के गुरु और शुक्र के प्रभाव से एक अलग आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रभाव  बदेगा । शहर मे  शांति बनी रहेगी। विद्यार्थियों के लिए साल का उत्तरार्ध थोड़ा कठिन बना रह सकता है। स्वाथ्य ओर बीमारी रोग  को लेकर साल के शुरूआत के 4 महीने सजग रहें। गुरु के लग्न में आने से भाग्य में वृद्धि और सेहत में सुधार होगा। कुल मिलाकर शिवपुरी मे उन्नति के अवसर मिलेंगे ओर विकास उत्तरोत्तर व्रद्धि होगी |
 *पर्यटन ओर वन विभाग  के छेत्र में अब होगा विकास* 
शिबपुरी  की कुंडली में बुध की महादशा लगने से शहर के विकास के लिए विशेष अवसर प्राप्त होंगे,   उपरोक्त आंकलन ग्रहो की स्थिति अनुसार एक प्रयास है शिवपुरी की कुंडली में बुध ग्रह लग्न और कर्म स्थान का स्वामी है ,उसी के साथ पराक्रम भाव में होने से अब शिबपुरी की दशा बदलने जा रही है  बुध की महादशा में शहर में शिक्षा ,वकालात, पर्यटक ,नेशनल पार्क  शेयर ब्रोकर, बैंकिंग क्षेत्र में यहां से जुड़े लोगों को अधिक लाभ प्राप्त होगा । *2019 से 2036 तक बुध की  महादशा   17 वर्ष  व्यापारिक और कला के क्षेत्र में शहर में विशेष अवसर प्राप्त होंगे* , स्वनिर्मित कला के क्षेत्र में भी जनता को लाभ योग बनेंगे , स्वर्ण एवं धातु के  व्यापार में भी लाभ होगा ।  समाज से जुड़े विशेष व्यक्तित्व को सम्मान भी प्राप्त होगा । बुध की महादशा में शिक्षा के स्तर में पूर्ण सुधार होकर नवीन योजनाएं बनेंगी । इसी के साथ स्वास्थ्य विभाग में भी परिवर्तन और उन्नति के अवसर देखने को मिलेंगे । बुध  वाणिज्य का कारक होने से शासन को राजस्व से धन लाभ प्राप्त होगा । उत्पादन के छेत्र में नए अवसर, धर्म कार्यो में वृद्धि, लोक कल्याण और जन कल्याण से जुड़े कार्य होंगे, । औषधियों , जड़ी बूटी इत्यदि का संग्रह ओर उनका सदुपयोग किया जाएगा, संचार की सुविधा बढ़ेगी । प्राचीन सिद्ध स्थानों का पुनर्निर्माण होगा। शुक्र का तृतीय भाव मे होने से  सौन्दर्यकरण में  विकास , रेलवे छेत्र में नए निर्माण के साथ सुख सुविधा का  विस्तार होगा, लेखन और प्रकाशन इत्यदि में भी सुधार और  विस्तार रहेगा ।।
 *शिवपुरी की कुंडली में 2023  मे ग्रह दशा ओर अंतर्दशा प्रभाव* 
डॉ विकासदीप ज्योतिष के अनुसार शिवपुरी की कुंडली मे 25-02-2022 से 25-02-02-23 तक बुध मे केतू की अंतर्दशा चल रही है | जो अभी भी कार्यो मे अड़ंगे , नगरपालिका मे विवाद , उलझन ओर कार्यो मे रुकावट पैदा करने वाली दशा है | केतू प्रशासको मे भी मतभेद पैदा करता है | बड़े कार्यो की सफलता में रुकावट देगा ।
 *शिवपुरी की कुंडली मे 25-02-2023 से 23-12-2025  तक बुध मे शुक्र  की अंतर्दशा आ रही है* इस वर्ष नवीन संवत्सर का राजा बुध ओर मंत्री शुक्र होने से यह योग शिवपुरी के विकास के लिए उत्तम श्रेष्ठ सिद्ध होगा | जब संवत्सर का राजा बुध होता है तो किसान खुश ओर खेती उत्तम पैदा होती है | प्रथ्वी जल मग्न होती है | मंत्री शुक्र होने से अधिक वर्षा से पानी जमाव होने से रोग फैलने की अधिक संभावना रहेगी | कीट इत्यादि फसल का नाश भी करते है | अनाज का संग्रहण करने वालो को घाटा उठाकर सस्ते मे माल को बेचना पड़ता है | प्रजा को अच्छा खाद्यान उच्च दामो पर खरेदना पड़ता है |  कुंडली मे शुक्र भाग्य का स्वामी है इसी दशकाल मे शिवपुरी का भाग्य उदय ओर परिवर्तन होगा | *शिवपुरी के विकास के लिए ये 2023 से 2025 तक का समय एक विकास की नयी दिशा तय करेगा* | एक नए रूप मे शिवपुरी देखने को मिलेगा जिसमे भौतिक संसाधन युक्त ओर एक आकर्षक व्यक्तित्व भी देखने को मिलेगा | नवीन व्यापार ओर पर्यटन के छेत्र मे विस्तार होगा | जमीन के छेत्र से पैसा कमाने का योग बनेगा | स्त्री वर्ग को विशेष सम्मान ओर राजनीति मे भी परिवर्तन देखने को मिलेगा | शुक्र से जुड़े क्षेत्रों में आएगी तेजी शुक्र ग्रह के कारण जैसे ज्वैलरी, भोग विलास, मनोरंजन, लाइफस्टाइल आदि सेक्टरों में अचानक से तेजी और गिरावट का दौर आ सकता है जिसके कारण इन क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों के लिए कई समस्याएं खड़ी हो सकती है। इस सेक्टर से जुड़े लोगों को धैर्य रखते हुए आगे बढ़ना होगा ताकि वे किसी तरह की समस्या में न पड़ें।

13-08-2023 से *04-10 -2023 बुध में शुक्र  में सूर्य प्रत्यान्तर:-- इस दशा काल मे राजा के द्वारा शहर को नयी सौगात मिलेगी* | भूमि सुधार, उत्खनन ओर क्रशि के छेत्र मे विस्तार के योग बनेंगे | विपक्षी  दल सत्ता मे हावी रहेगा | चुनाव मे सत्ता पक्ष को हानी उठानी पड़ सकती है }इस समय काल मे  कोई बड़ा महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण होगा जो यादगार रहेगा इच्छा अनुसार सफलता के कार्य बड़े-बड़े निर्माण जो शक्ति पूर्ण संपूर्ण होंगे । शिबपुरी कुण्डली में मंगल का लग्न का प्रभाव प्रशासन शक्ति पूर्ण ,  सजग एवं सक्रिय रहेगा । जमीन-  संपत्ति के बड़े बड़े मुद्दे सामने आएंगे, जनता के  क्रोध  के कारण अनावश्यक वाद-विवाद सामने आएंगे
 04-10-2023 से 29-12-2023 तक शुक्र मे बुध मे चन्द्र दशा :-- शिवपुरी की कुण्डली की सबसे खराब ग्रह अगर देखे तो अष्टम भाव के चंद्रमा के होने से रही है इस ग्रह के दुष्प्रभाव के रूप मे यहा रोग से म्रत्युदर अधिक रहती है |इस समय काल मे सबसे अधिक म्रत्यु कारण बनेंगे | मरने वालो मे गर्भ वती महिला ओर बच्चे अधिक रहते है | चन्द्र के नकारात्मक प्रभाव मे अव्यवस्थाओ के कारण, भागदौड़ी ओर गंदगी , दूषित पानी मुख्य रूप से जिम्मेदार है | अगर उपरोक्त छेत्र मे गौर किया जाये तो इस दोष से भी बचा जा सकता है | 
2023 मे बुध  का अंक प्रभावी होने से डॉ विकासदीप शर्मा मंशापूर्ण ज्योतिष के अनुसार किसी विशेष  जाति या  व्यक्तित्व को राजनीति मे शहर का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त होगा  जिसमे बड़े सामाजिक लोगों की  महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी ।  मंगल ग्रह को  खेल एवं तकनीकी क्षेत्र में विशेष लाभप्रद माना गया है शिवपुरी के लिए इस समय काल में खेल , स्पोर्ट्स के क्षेत्र में कोई विशेष उपलब्धि प्राप्त होगी । इसी के साथ शिवपुरी के लिए भूमि,  अग्नि मशीनरी , मेडिकल ,पत्थर एवं तकनीकी क्षेत्र में विशेष लाभ योग बनेगा । मार्च 2023  मंगल राहू  प्रत्यांतर दशाओ  में रोग से  मृत्यु की दर की संख्या बढ़ सकती है  अभी महामारी का प्रकोप ओर भी  बढ़ेगा । प्रॉपर्टी से संबंधित बड़े विवादित मामले भी उजागर होंगे । मंगल को वैवाहिक कारक होने से दाम्पत्य झगड़े तलाक इत्यादि केस में भी वृद्धि रहेगी हिंसा लूटपाट चोरी इत्यादि के संकेत भी मिलते हैं
शिवपुरी की कुण्डली में उच्च गुरु:-- प्रायः प्रजा हित में कार्य होंगे, वाणिज्य  व्यापार, कृषि के छेत्र में सुधार, मंडी उत्पादन छेत्र में लाभ होगा, न्याय पालिका  शिक्षा की नीतियो में बदलाव, ओर धर्म कानून सख्त होकर अपनी कार्यवाही करेगा ।गौचर मे गुरु षष्ठ भाव मे जब रहता है प्रजा के कष्ट दूर होते है ओर रोगो का नाश होता है |श्रमिकों को काम काज मिलता है
पिछले वर्ष के राशि फल मे उपरोक्त  भविष्यफल का आकलन किया गया था जिसमे 29 09 2020 से राहु केतु का परिवर्तन 11 माह में  शहर को मिलेगी पानी समस्या से निजात  {नवम भाव धार्मिक कार्य, न्यास, जल परिवहन का है । शिवपुरी कुण्डली में नवम भाव मे केतु के होने से पानी की समस्या बनी रहती है । न्याय पालिका का अड़ियल ओर जिद्दीपन स्वभाव इस योजना में प्रजा को संकट और समस्या देता है ।सरकारी उपक्रम उपभोक्ता की अनदेखी करते है । बुध शुक के प्रभाव से पर्यटन के छेत्र मे शिवपुरी को मिलेगा बड़ा अवसर ओर देश विदेशो मे नाम से जाना जाएगा | 

वर्ष 2023 में प्रवेश करते समय पूरे विश्व में आर्थिक मंदी के आसार और कोरोना की नई लहर को लेकर भी चिंता बनी हुई है। ग्रहों की स्थिति की बात करें तो शनि महाराज 30 साल बाद कुंभ राशि में गोचर करेंगे। राहु-केतु जिन्हें छाया ग्रह कहा जाता है, 2023 के नवंबर में मेष राशि से मीन राशि मे जाएंगे। गुरु अप्रैल में मेष राशि में आएंगे। ऐसे में अब हम संक्षिप्त में भारत सहित चीन और अमेरिका की कुंडली पर नजर डालते हैं तो इस तरह की भविष्यवाणी निकलकर आती है।

साल 2023 में भारत की कुंडली में लग्न से 10वें और चंद्रमा से 8वें भाव में शनि गोचर करेंगे। बृहस्पति और राहु क्रमशः लग्न और चंद्रमा से 11वें और 9वें भाव में संबंध बनाएंगे। ऐसे में कई बड़ी कंपनियों पर आयकर का दबाव बढ़ेगा। कॉरपोरेट गवर्नेंस एक मुद्दा रहेगा और कोई बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। मेटल, मैन्युफैक्चरिंग और कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अच्छे नतीजे देखने को मिलेंगे। वाहन और गैजेट्स के कारोबार में तेजी रहेगी। आध्यात्मिक और पुराने पारंपरिक ज्ञान को 2023 में अधिक आकर्षण मिलेगा। लोग ज्यादा फिलॉसॉफिकल होंगे। केंद्र सरकार को सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचना पड़ सकता है। शेयर बाजार एक स्तर पर देखने को मिलेगा, सोने की खरीदारी अधिक होगी, मनोरंजन, कपड़ा उद्योग में अच्छी प्रगति देखने को मिलेगी। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार कुछ बड़ा फैसला ले सकती है। इस क्षेत्र में सरकारी निवेश बढ़ेगा। खिलाड़ी भी सरकार के इस कदम में सहयोग बनेंगे।
2023 मे सम्पूर्ण विश्व  मे मंगल और शुक्र ग्रह से जुड़ी राशियों पर होगा सबसे ज्यादा प्रभाव 
इस वर्ष सबसे ज्यादा ग्रहणों का प्रभाव मंगल और शुक्र ग्रह से जुड़ी राशियों पर पड़ेगा। मंगल की राशि मेष ब्रश्चिक  और शुक्र की राशि व्रषभ  तुला के जातकों को आने वाले समय में सबसे ज्यादा  उठापटक का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में उन्हें संभल कर रहना चाहिए और किसी भी आकस्मिक परिस्थिति से निपटने के लिए उन्हें अभी से मानसिक रूप से तैयार हो जाना चाहिए। धर्म पूजा करते रहने से लाभ भी होगा |
निवेदन  :-- उपरोक्त भविष्यफल , कथन , शास्त्र अनुसार  फलित ग्रहो की गौचर गणनाओ के आधार पर की जाती है | किसी भी प्रकार की व्यक्ति विशेष का विवरण नही किया जाता है | ज्योतिष केवल एक ग्रहो की चाल के अनुसार उनके स्वभाव के अनुसार आंकलन है | जिसको हम कभी भविष्यवाणी नाम नही देते है हमारा प्रयास मेदिनी ज्योतिष अनुसार जैसे भारत की कुण्डली पर विधवान वर्ग अपना फलित आंकलन निकालते है उसी तरह हमने भी 2008 से निरंतर शिवपुरी की जन्म कुण्डली ओर उसके  नाम को आधार मानकर कुंडली बनाकर विश्लेषण करते है ।

गुरुवार, 30 नवंबर 2023

चुनावी परिणाम 3 दिसंबर को इस में 3 अंक गुरु और 17 नबम्बर को चुनाव का 8 अंक शनि देव जो न्याय के कारक है

*चुनावी परिणाम 3 दिसंबर को इस में 3 अंक गुरु और   17 नबम्बर को चुनाव का 8 अंक  शनि देव जो न्याय के कारक है, और 7 अंक केतु का देगा अप्रत्याशित परिणाम  सोच से परे रहेंगे चुनावी विश्लेषण , जीत हार का अंतर  में 3,5, 7  अंक पूर्ण अंक या मूलांक का रहेगा खेल इसी  अंक के आसपास रहेगा प्रत्याशियों की जीत हार का अंतर श्री मंशापूर्ण ज्योतिष* 9993462153
चुनावी परिणाम में गुरु ओर शनि देव की रहेगी मुख्य भूमिका, 03 12 2023 मूलांक 3 ओर भाग्यांक 4 बनेगा , राहु देव करेंगे चमत्कारिक परिणाम,
3 अंक गुरु का अंक है और 4 राहु का जो राजनीतिक कारक है* 
राजनीति में धर्म मार्ग पर चलने वाले ओर कुण्डली में राहु जिसका बलवान होगा उसी को मिलेगी विजय, 
अंक 3 राज्यो की  शुभता का संचार बनाए रखेगा. मित्रों के सहयोग से अवसरों की अधिकता बनी रहेगी. योग्यता व प्रबंधन को बल मिलेगा. कलात्मक एवं रचनात्मक प्रदर्शन में आगे रहेंगे. वाणिज्यिक गतिविधियों में रुचि बढ़ाएंगे. नवीन सरकार अपना आकर्षण बनाएंगे , कामकाजी मामले पक्ष में बनेंगे. गुरु के अंक 3 के व्यक्ति व्यवस्था  ओर कर्म   में भरोसा रखते हैं. प्रबंध का महत्व समझते हैं. नीति नियम बनाए रखते हैं. ऐसे लोगो को विजय की खुशी प्राप्त होगी । 
मध्य प्रदेश राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। मिजोरम ओर छतीसगढ़ में 7 नवंबर,  को चुनाव हुए 7 अंक केतु का होने से अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिलेंगे, और इसी तरह मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को चुनाव हुए 8 अंक शनि का न्यायिक होने से शनि देव सत्ता का न्याय करेंगे जो राष्ट्र हित मे होगा वही श्रेष्ठ बनेगा ,  राजस्थान में 25 नवंबर को वोट डाले गए यहां भी 7 अंक केतु का अंक ओर 3 दिसंबर को 3 का अंक गुरु का होने से अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिलेंगे, ।
केतु प्रधान भी है वर्ष 2023
वर्ष 2023 का कुल योग (2+0+2+3=7) 7 होगा। अंक ज्योतिष में 7 का अंक केतु का अंक होता है। केतु को विपरीत प्रकृति का ग्रह माना जाता है क्योंकि यह आपको भौतिक जीवन से अलग करता है, लेकिन आपको आध्यात्मिक रूप से सफल बनाता है। केतु एक रहस्यमयी ग्रह है, इसलिए यह जान पाना बहुत मुश्किल होता है कि कब आपके लिए शुभ और कब अशुभ परिणाम देगा। यह भी प्रत्यासित की बात करेगा, 
वर्ष पर चंद्रमा और बृहस्पति का भी प्रभाव है, वर्ष 2023 में 2 का अंक दो बार आया है और 2 चंद्रमा का अंक होता है, इसलिए इस वर्ष में अंक 2 और चंद्रमा का विशेष प्रभाव दिखाई देगा। इसके अतिरिक्त भी इसमें अंक 3 भी शामिल है जो कि बृहस्पति का अंक है। बृहस्पति और चंद्रमा के संयोग से गजकेसरी योग भी बनता है, क्योंकि चंद्रमा मन और बृहस्पति ज्ञान के कारक होते हैं, इसलिए 3 12 2023 को  गुरु, चन्द्र केतु प्रधान लोगों को शुभ और विजय परिणाम प्रदान करेगा।
 *गुरु कृपा केवलम* *जय माई की, जय गुरुदेव*

रविवार, 4 दिसंबर 2022

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत या ग्यारस तिथि का महत्त्व*

*हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत या ग्यारस तिथि का महत्त्व*   
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हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन व वंदन करने की प्रेरणा देने वाला व्रत ही एकादशी व्रत कहलाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है कि जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं। 
 *एकादशी व्रत क्या है ?* 
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हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘ग्यारह’। प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है–एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व है। वैसे तो हिन्दू धर्म में ढेर सारे व्रत आदि किए जाते हैं लेकिन इन सब में एकादशी का व्रत सबसे पुराना माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत की बहुत मान्यता है।

 *एकादशी व्रत का महत्व क्या है ?* 
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पुराणों के अनुसार *एकादशी को ‘हरी दिन’ और ‘हरी वासर’* के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को वैष्णव और गैर-वैष्णव दोनों ही समुदायों द्वारा मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एकादशी व्रत हवन, यज्ञ , वैदिक कर्म-कांड आदि से भी अधिक फल देता है। इस व्रत को रखने की एक मान्यता यह भी है कि इससे पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण में भी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया गया है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है उनके लिए एकादशी के दिन गेहूं, मसाले और सब्जियां आदि का सेवन वर्जित होता है। भक्त एकादशी व्रत की तैयारी एक दिन पहले यानि कि दशमी से ही शुरू कर देते हैं। दशमी के दिन श्रद्धालु प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करते हैं और इस दिन वे बिना नमक का भोजन ग्रहण करते हैं।

 *एकादशी व्रत का नियम क्या है ?* 
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एकादशी व्रत करने का नियम बहुत ही सख्त होता है जिसमें व्रत करने वाले को एकादशी तिथि के पहले सूर्यास्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास रखना पड़ता है। यह व्रत किसी भी लिंग या किसी भी आयु का व्यक्ति स्वेच्छा से रख सकता है।

एकादशी व्रत करने की चाह रखने वाले लोगों को दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) के दिन से कुछ जरूरी नियमों को मानना पड़ता है। दशमी के दिन से ही श्रद्धालुओं को मांस-मछली, प्याज, दाल (मसूर की) और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। रात के समय भोग-विलास से दूर रहते हुए, पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

एकादशी के दिन सुबह दांत साफ़ करने के लिए लकड़ी का दातून इस्तेमाल न करें। इसकी जगह आप नींबू, जामुन या फिर आम के पत्तों को लेकर चबा लें और अपनी उँगली से कंठ को साफ कर लें। इस दिन वृक्ष से पत्ते तोड़ना भी ‍वर्जित होता है इसीलिए आप स्वयं गिरे हुए पत्तों का इस्तेमाल करें और यदि आप पत्तों का इतज़ाम नहीं कर पा रहे तो आप सादे पानी से कुल्ला कर लें। स्नान आदि करने के बाद आप मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें या फिर पंडितजी से गीता का पाठ सुनें। सच्चे मन से ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जप करें। भगवान विष्णु का स्मरण और उनकी प्रार्थना करें। इस दिन दान-धर्म की भी बहुत मान्यता है इसीलिए अपनी यथाशक्ति दान करें।

एकादशी के अगले दिन को द्वादशी के नाम से जाना जाता है। द्वादशी दशमी और बाक़ी दिनों की तरह ही आम दिन होता है। इस दिन सुबह जल्दी नहाकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सामान्य भोजन को खाकर व्रत को पूरा करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न और दक्षिणा आदि देने का रिवाज़ है। ध्यान रहे कि श्रद्धालु त्रयोदशी आने से पहले ही व्रत का पारण कर लें। इस दिन कोशिश करनी चाहिए कि एकादशी व्रत का नियम पालन करें और उसमें कोई चूक न हो।

 *एकादशी व्रत का भोजन या आहार क्या होना चाहिए ?* 
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शास्त्रों के अनुसार श्रद्धालु एकादशी के दिन आप इन वस्तुओं और मसालों का प्रयोग अपने व्रत के भोजन में कर सकते हैं –

1. ताजे फल
2. मेवे
3. चीनी
4. कुट्टू
5. नारियल
6. जैतून
7. दूध
8. अदरक
9. काली मिर्च
10. आलू
11. साबूदाना
12. शकरकंद
13. सेंधा नमक
एकादशी व्रत का भोजन सात्विक होना चाहिए। कुछ व्यक्ति यह व्रत बिना पानी पिए संपन्न करते हैं जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है।

 *एकादशी व्रत को क्या नही करना चाहिए* ?
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वृक्ष से पत्ते नही तोडना।
घर में झाड़ू न लगाएं। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि घर में झाड़ू आदि लगाने से चीटियों या छोटे-छोटे जीवों के मरने का डर होता है। और इस दिन जीव हत्या करना पाप होता है।
बाल न कटवाएं।
ज़रूरत हो तभी बोलें। कम से कम बोलने की कोशिश करें। ऐसा इसीलिए किया जाता है क्यूंकि ज्यादा बोलने से मुँह से गलत शब्द निकलने की संभावना रहती है।
एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित होता है।
किसी का दिया हुआ अन्न आदि न खाएं।
मन में किसी प्रकार का विकार न आने दें।
यदि कोई फलाहारी है तो वे गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें। वे आम, केला, अंगूर, पिस्ता और बादाम आदि का सेवन कर सकते है।

 *एकादशी व्रत की कथा* 
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हर व्रत को मनाये जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक वजह या कथा छुपी होती है। एकादशी व्रत मनाने के पीछे भी कई कहानियां है। एकादशी व्रत कथा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है, जिन्हें हम अलग-अलग नामों से जानते हैं। सभी एकादशियों के पीछे अपनी अलग कहानी छुपी है। एकादशी व्रत के दिन उससे जुड़ी व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। शास्त्रों के अनुसार बिना एकादशी व्रत कथा सुने व्यक्ति का उपवास पूरा नहीं होता है।

रविवार, 25 सितंबर 2022

नवरात्रि सम्पूर्ण पूजा सरल विधि, डॉ विकास दीप शर्मा श्री मंशापूर्ण ज्योतिष

शारदीय नवरात्रि विशेष 2022 श्री मंशापूर्ण ज्योतिष 9993462153
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शारदीय नवरात्रि घट (कलश) स्थापना मुहूर्त एवं पूजाविधि
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प्रतिवर्ष की भांति इसवर्ष भी हिंदुओ के प्रमुख त्योहारो में से एक शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाएगा। इस नवरात्रि मां जगदंबा हाथी पर आएंगी और हाथी पर ही बैठकर जाएंगी । 

सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र शुक्ल व ब्रह्म योग कन्या राशि के चन्द्र व कन्या के ही सूर्य आनन्दादि महायोग श्रीवत्स में यदि देवी आराधना का पर्व शुरू हो, तो यह देवीकृपा व इष्ट साधना के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार अनुसार माताजी के आगमन प्रस्थान के वाहन इस प्रकार बताए गए हैं।
आगमन वाहन
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"शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे। गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥"

रविवार व सोमवार को हाथी, शनिवार व मंगलवार को घोड़ा, गुरुवार व शुक्रवार को पालकी, बुधवार को नौका आगमन।

इस साल शारदीय नवरात्रि शनिवार से प्रारंभ हो रही हैं इसके अनुसार देवी मां डोली में विराजकर कैलाश से धरती पर आ रही हैं। 

प्रस्थान वाहन
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रविवार व सोमवार भैंसा,
शनिवार और मंगलवार को सिंह,
बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी,
गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान
अतः मां का आगमन हाथी पर होगा जो
समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक है। माता की विदाई भी हाथी पर होगी (मतांतर से नाव)। देवी भागवत के अनुसार जब मां का आगमन व विदाई हाथी पर होती है देश में खुशहाली का वातावरण निर्मित होता है व पर्याप्त वर्षा से जनता प्रसन्न होती है। नवरात्रि में घटस्थापना, ज्वार रोपण नवदुर्गाओं की क्रमशः पूजन, अर्चन, दुर्गा सप्तशती के सात सौ महामंत्रों से हवन, कन्या पूजन व अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुल देवी पूजन व उपवास का विशेष महत्व है।

साधक भाई बहन जो ब्राह्मण द्वारा पूजन करवाने में असमर्थ है एवं जो सामर्थ्यवान होने पर भी समयाभाव के कारण पूजा नही कर पाते उनके लिये पंचोपचार विधि द्वारा सम्पूर्ण पूजन विधि बताई जा रही है आशा है आप सभी साधक इसका लाभ उठाकर माता के कृपा पात्र बनेंगे।

घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
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नवरात्रि में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है।

कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

26 सितम्बर रात्रि को 03:08 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी। तथा सम्पूर्ण दिवस हस्त नक्षत्र रहेगा। चित्रा नक्षत्र वैधृति योग रहित अभिजित मुहूर्त, द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना शुभ मानी जाती है। परन्तु इस वर्ष चित्रा नक्षत्र प्रतिपदा तिथि को नहीं रहेगा इसलिये साधक गण कन्या लग्न 06:07 से 07:47 तक घट स्थापना आदि कार्य सम्पन्न कर लें । ये समय सभी तरह से दोष मुक्त तो नही फिर भी कन्या लग्न होने से आंशिक दोषमुक्त है। इसके बाद दोपहर अभिजित मुहूर्त 11:44 से 12:32 में ही घटस्थापना (जौ बोना) अधिक शुभ रहेगा।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 25, 2022 को रात्रि 03:23 बजे से।

प्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 27, को रात्रि 03:08 बजे तक।
नवरात्रि की तिथियाँ
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पहला नवरात्र - प्रथमा तिथि 26 सितम्बर 2022, सोमवार, शुक्ल योग माँ शैलपुत्री की उपासना।

दूसरा नवरात्र - द्वितीया तिथि, 27 सितम्बर, मंगलवार, ब्रह्म योग, माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना।

तीसरा नवरात्र - तृतीया तिथि, 28 सितम्बर, बुधवार, वैधृति योग, माँ चंद्रघंटा की उपासना।

चौथा नवरात्र - चतुर्थी तिथि 29 सितम्बर, गुरुवार, विषकुम्भ योग, माँ कुष्मांडा की उपासना।

पांचवां नवरात्र - पंचमी तिथि, 30 सितम्बर, शुक्रवार, प्रीती योग, माँ स्कन्द जी की उपासना।

छठा नवरात्र - षष्ठी तिथि, 1 अक्टूबर , शनिवार, आयुष्य योग, माँ कात्यायनी की उपासना।

सातवां नवरात्र - सप्तमी तिथि, 
2 अक्टूबर, रविवार, सौभाग्य योग, माँ कालरात्रि की उपासना।

आठवां नवरात्र - अष्टमी तिथि, 3 अक्टूबर, सोमवार, शोभन योग, माँ महागौरी की उपासना।

नौवां नवरात्र - नवमी तिथि,4 अक्टूबर, मंगलवार, अतिगण्ड योग माँ सिद्धिदात्री की उपासना।

दशहरा एवं दुर्गा विसर्जन - दशमी तिथि, 5 अक्तूबर 2022, बुधवार।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री 
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👉 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है। 
👉 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
👉 पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
👉 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
👉 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
👉 नर्मदा या गंगाजल या फिर अन्य साफ जल
👉 रोली , मौली
👉 इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
👉 पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
👉 पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
👉 कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
👉 ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
👉 नारियल, लाल कपडा, फूल माला
,फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती

भगवती मंडल स्थापना विधि 
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जिस जगह पुजन करना है उसे एक दिन पहले ही साफ सुथरा कर लें। गौमुत्र गंगाजल का छिड़काव कर पवित्र कर लें।
सबसे पहले गौरी〰️गणेश जी का पुजन करें। 

भगवती का चित्र बीच में उनके दाहिने ओर हनुमान जी और बायीं ओर बटुक भैरव को स्थापित करें। भैरव जी के सामने शिवलिंग और हनुमान जी के बगल में रामदरबार या लक्ष्मीनारायण को रखें। गौरी गणेश चावल के पुंज पर भगवती के समक्ष स्थान दें।
मैं एक चित्र बना कर संलग्न किये दे रहा हूं कि कैसे रखना है सारा चीज। मैं एक एक कर विधि दे रहा हूं। आप बिल्कुल आराम से कर सकेंगे।

दुर्गा पूजन सामग्री
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पंचमेवा पंच​मिठाई रूई कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंग,  पान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, ​तिल, माँ की प्रतिमा, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला।

गणपति पूजन विधि
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किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें।

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। 
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन:👉  हाथ में अक्षत लेकर
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥

ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। 

हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि, 

अर्घ्य👉 अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि, 

आचमनीय-स्नानीयं👉  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि 

वस्त्र👉  लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि, 

यज्ञोपवीत👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि, 

पुनराचमनीयम्👉 दोबारा पात्र में जल छोड़ें। ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः  

रक्त चंदन लगाएं:👉  इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।

इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, 

दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
 
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, 

मिष्ठान अर्पित करने के लिए मंत्र👉 शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। 

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः 

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें👉 ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि।

अब फल लेकर गणपति को चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पयामि, 

अब दक्षिणा चढ़ाये ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।

घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
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सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।

कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र , पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते  थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।

नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है , पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते है। नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।

आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें। आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें  

"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥" 

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें 

कब नीचे दिए मंत्र से आचमन करें - 

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:, 

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। 
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 

शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें- 

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।  

दुर्गा पूजन हेतु संकल्प 
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पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायने दक्षिण गोले शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ शनि वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये। 
 
दुर्गा पूजन विधि
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सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहया​मि॥

आसन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥

अर्घ्य👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥

आचमन👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥ 
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

पंचामृत स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥

पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

गन्धोदक-स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥

गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

शुद्धोदक स्नान👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥
आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि 
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

वस्त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥ 
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि। 
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।

सौभाग्य सू़त्र👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥
मंगलसूत्र या हार पहनाए।

चन्दन👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥
चंदन लगाए

ह​रिद्राचूर्ण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥
हल्दी अर्पण करें।

कुंकुम👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥ 
कुमकुम अर्पण करें।

​सिन्दूर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥
सिंदूर अर्पण करें।

कज्जल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥
काजल अर्पण करें।

दूर्वाकुंर👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥
दूर्वा चढ़ाए।

आभूषण👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।

पुष्पमाला👉  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥
फूल माला पहनाए।

धूप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥ 
धूप दिखाए।

दीप👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥ 
दीप दिखाए।

नैवेद्य👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥
नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।

फल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े 

ताम्बूल👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।

द​क्षिणा👉 श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें मा ये सब आपका ही है आप ही हमें देती है हम इस योग्य नहीं आपको कुछबड़े सकें।

आरती👉 माँ की आरती करें

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
>मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥
आरती के बाद आरती पर चारो तरफ जल फिराये।

इसके बाद भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र
〰〰〰〰〰
न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥ 

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2॥   
                      
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3॥    
                      
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4॥   
                      
परित्यक्तादेवा विविध​विधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥5॥      
        
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6॥    
                    
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7॥   
                         
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8॥     
                    
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9॥  
                                  
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10॥ 
                                      
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11॥   
                                                  
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥12॥

इसके बाद सभी लोग माँ को शाष्टांग प्रणाम कर घर मे सुख समृद्धि की कामना करें प्रशाद बांटे।

बुधवार, 21 सितंबर 2022

श्री कृष्ण जी से जुड़ी कुछ विशेष बात


श्री कृष्ण के बारे में कुछ रोचक जानकारी🔸🔸
कृष्ण को पूर्णावतार कहा गया है। कृष्ण के जीवन में वह सबकुछ है जिसकी मानव को आवश्यकता होती है। कृष्ण गुरु हैं, तो शिष्य भी। आदर्श पति हैं तो प्रेमी भी। आदर्श मित्र हैं, तो शत्रु भी। वे आदर्श पुत्र हैं, तो पिता भी। युद्ध में कुशल हैं तो बुद्ध भी। कृष्ण के जीवन में हर वह रंग है, जो धरती पर पाए जाते हैं इसीलिए तो उन्हें पूर्णावतार कहा गया है। मूढ़ हैं वे लोग, जो उन्हें छोड़कर अन्य को भजते हैं… ‘भज गोविन्दं मुढ़मते।

आठ का अंक 
🔸🔸🔹🔹
 कृष्ण के जीवन में आठ अंक का अजब संयोग है। उनका जन्म आठवें मनु के काल में अष्टमी के दिन वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में जन्म हुआ था। उनकी आठ सखियां, आठ पत्नियां, आठमित्र और आठ शत्रु थे। इस तरह उनके जीवन में आठ अंक का बहुत संयोग है।
 
कृष्ण के नाम 
🔸🔸🔹🔹
 नंदलाल, गोपाल, बांके बिहारी, कन्हैया, केशव, श्याम, रणछोड़दास, द्वारिकाधीश और वासुदेव। बाकी बाद में भक्तों ने रखे जैसे ‍मुरलीधर, माधव, गिरधारी, घनश्याम, माखनचोर, मुरारी, मनोहर, हरि, रासबिहारी आदि।

कृष्ण के माता-पिता 
🔸🔸🔹🔸🔸
 कृष्ण की माता का नाम देवकी और पिता का नाम वसुदेव था। उनको जिन्होंने पाला था उनका नाम यशोदा और धर्मपिता का नाम नंद था। बलराम की माता रोहिणी ने भी उन्हें माता के समान दुलार दिया। रोहिणी वसुदेव की प‍त्नी थीं।

कृष्ण के गुरु 
🔸🔸🔹🔹
 गुरु संदीपनि ने कृष्ण को वेद शास्त्रों सहित 14 विद्या और 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। गुरु घोरंगिरस ने सांगोपांग ब्रह्म ‍ज्ञान की शिक्षा दी थी। माना यह भी जाता है कि श्रीकृष्ण अपने चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ के प्रवचन सुना करते थे।
कृष्ण के भाई 
🔸🔸🔹🔹
कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। शौरपुरी (मथुरा) के यादववंशी राजा अंधकवृष्णी के ज्येष्ठ पुत्र समुद्रविजय के पुत्र थे नेमिनाथ। अंधकवृष्णी के सबसे छोटे पुत्र वसुदेव से उत्पन्न हुए भगवान श्रीकृष्ण। इस प्रकार नेमिनाथ और श्रीकृष्ण दोनों चचेरे भाई थे। इसके बाद बलराम और गद भी कृष्ण के भाई थे।

कृष्ण की बहनें 
🔸🔸🔹🔹
कृष्ण की 3 बहनें थी : 

1. एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं)।

2. सुभद्रा : वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से बलराम और सुभद्र का जन्म हुआ। वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बंदी थे, उस समय ये नंद के यहां रहती थीं। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। जबकि बलराम दुर्योधन से करना चाहते थे।

3. द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी हालांकि कृष्ण की बहन नहीं थी, लेकिन श्रीकृष्‍ण इसे अपनी मानस ‍भगिनी मानते थे।

4.देवकी के गर्भ से सती ने महामाया के रूप में इनके घर जन्म लिया, जो कंस के पटकने पर हाथ से छूट गई थी। कहते हैं, विन्ध्याचल में इसी देवी का निवास है। यह भी कृष्ण की बहन थीं।

कृष्ण की पत्नियां 
🔸🔸🔹🔸🔸
 रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी।

कृष्ण के पुत्र 
🔸🔹🔹🔸
रुक्मणी से प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, जम्बवंती से साम्ब, मित्रवंदा से वृक, सत्या से वीर, सत्यभामा से भानु, लक्ष्मणा से…, भद्रा से… और कालिंदी से…।

कृष्ण की पुत्रियां
🔸🔸🔹🔸🔸
रुक्मणी से कृष्ण की एक पुत्री थीं जिसका नाम चारू था।

कृष्ण के पौत्र 
🔸🔸🔹🔹
प्रद्युम्न से अनिरुद्ध। अनिरुद्ध का विवाह वाणासुर की पुत्री उषा के साथ हुआ था।

कृष्ण की 8 सखियां 
🔸🔸🔹🔹🔸🔸
 राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं। सखियों के नाम निम्न हैं-

 ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इनके नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा।

कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रग्डदेवी और सुदेवी।
 इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गई सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। कुछ जगह पर- ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुङ्गविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। 

कृष्ण के 8 मित्र 
🔸🔸🔹🔸🔸
 श्रीदामा, सुदामा, सुबल, स्तोक कृष्ण, अर्जुन, वृषबन्धु, मन:सौख्य, सुभग, बली और प्राणभानु। 
इनमें से आठ उनके साथ मित्र थे। ये नाम आदिपुराण में मिलते हैं। हालांकि इसके अलावा भी कृष्ण के हजारों मित्र थे जिसनें दुर्योधन का नाम भी लिया जाता है।

कृष्ण के शत्रु 
🔸🔸🔹🔹
कंस, जरासंध, शिशुपाल, कालयवन, पौंड्रक। कंस तो मामा था। कंस का श्वसुर जरासंध था। शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। कालयवन यवन जाति का मलेच्छ जा था जो जरासंध का मित्र था। पौंड्रक काशी नरेश था जो खुद को विष्णु का अवतार मानता था।

कृष्ण के शिष्य 
🔸🔸🔹🔹
कृष्ण ने किया जिनका वध : ताड़का, पूतना, चाणूड़, शकटासुर, कालिया, धेनुक, प्रलंब, अरिष्टासुर, बकासुर, तृणावर्त अघासुर, मुष्टिक, यमलार्जुन, द्विविद, केशी, व्योमासुर, कंस, प्रौंड्रक और नरकासुर आदि।

कृष्ण चिन्ह 
🔹🔸🔹
 सुदर्शन चक्र, मोर मुकुट, बंसी, पितांभर वस्त्र, पांचजन्य शंख, गाय, कमल का फूल और माखन मिश्री।

कृष्ण लोक 
🔸🔹🔸
 वैकुंठ, गोलोक, विष्णु लोक।
कृष्ण ग्रंथ : महाभारत और गीता

कृष्ण का कुल 
🔸🔸🔹🔹
यदुकुल। कृष्ण के समय उनके कुल के कुल 18 कुल थे। अर्थात उनके कुल की कुल 18 शाखाएं थीं। यह अंधक-वृष्णियों का कुल था। वृष्णि होने के कारण ये वैष्णव कहलाए। अन्धक, वृष्णि, कुकर, दाशार्ह भोजक आदि यादवों की समस्त शाखाएं मथुरा में कुकरपुरी (घाटी ककोरन) नामक स्थान में यमुना के तट पर मथुरा के उग्रसेन महाराज के संरक्षण में निवास करती थीं।

शाप के चलते सिर्फ यदु‍ओं का नाश होने के बाद अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ को द्वारिका से मथुरा लाकर उन्हें मथुरा जनपद का शासक बनाया गया। इसी समय परीक्षित भी हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाए गए। वज्र के नाम पर बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र ब्रज कहलाने लगा। जरासंध के वंशज सृतजय ने वज्रनाभ वंशज शतसेन से 2781 वि.पू. में मथुरा का राज्य छीन लिया था। बाद में मागधों के राजाओं की गद्दी प्रद्योत, शिशुनाग वंशधरों पर होती हुई नंद ओर मौर्यवंश पर आई। मथुराकेमथुर नंदगाव, वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, मधुवन और द्वारिका।

कृष्ण पर्व 
🔸🔹🔸
 श्री कृष्ण ने ही होली और अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत की थी। जन्माष्टमी के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाता है।

मथुरा मंडल के ये 41 स्थान कृष्ण से जुड़े हैं
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मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शांतनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगांव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भांडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्मांड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, संकेत तीर्थ, लोहवन और वृन्दावन। इसके बाद द्वारिका, तिरुपति बालाजी, श्रीनाथद्वारा और खाटू श्याम प्रमुख कृष्ण स्थान है।

भक्तिकाल के कृष्ण भक्त:
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 सूरदास, ध्रुवदास, रसखान, व्यासजी, स्वामी हरिदास, मीराबाई, गदाधर भट्ट, हितहरिवंश, गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास, कुंभनदास, परमानंद, कृष्णदास, श्रीभट्ट, सूरदास मदनमोहन, नंददास, चैतन्य महाप्रभु आदि।         

कृष्णा जिनका नाम है 
गोकुल जिनका धाम है
ऐसे श्री कृष्ण को मेरा
बारम्बार प्रणाम है।                             

*जय श्रीराधे कृष्णा*
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मंगलवार, 20 सितंबर 2022

पितृ पक्ष में इन 5 जीवों को जरुर कराएं भोजन


इससे पितरों को मिलती है तृप्ति
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हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है। इसमें पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद किया जाता है और उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। विधि पूर्वक पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाते हैं। माना जाता है कि हमारे पितृ कुछ जीवों के माध्यम से धरती पर हमारे निकट आते हैं। इनके माध्यम से ही वो आहार ग्रहण करते हैं। इसलिए पितृपक्ष के दौरान इन जीवों को भोजन जरूर कराना चाहिए।
पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है जो 15 दिनों तक चलता है। पितृ पक्ष में पिंडदान का खास महत्व होता है।
पिंडदान में दान-दक्षिणा किया जाता है जिससे पूर्वजों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिल सके। श्राद्धपक्ष में इस दान का काफी महत्व है। माना जाता है कि पितृपक्ष में हमारे पितर धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं।

पितृ पक्ष में पितरों को तृप्ति तभी मिलती जब उन्हें अर्पित किए जाने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं। ये पांच अंश गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के नाम पर निकाले जाते हैं।

श्राद्ध कर्म में भोजन से पहले पांच जगहों पर अलग-अलग भोजन का अंश निकाला जाता है। भोजन का ये अंश पत्ते पर गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए निकाला जाता है जबकि कौवे के लिए इसे भूमि पर रखा जाता है। फिर पितरों से प्रार्थना की जाती है कि वो इनके माध्यन से भोजन ग्रहण करें।

इन पांच अंशों के अर्पण को पञ्च बलि कहा जाता है। पञ्च बलि के साथ ही श्राद्ध कर्म पूर्ण माना जाता है। श्राद्ध में भोजन का अंश ग्रहण करने वाले इन पांचों जीवों का विशेष महत्व होता है। इसमें कुत्ता जल तत्त्व, चींटी अग्नि, कौवा वायु का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक माने गए हैं।

इन पांचों को आहार देकर पंच तत्वों के प्रति आभार भी व्यक्त किया जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में इन जीवों को भोजन कराने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिल सकती है।

पितृ पक्ष में नहीं किए जाते हैं ये 5 काम
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पितृ पक्ष की पूरी अवधि को खास माना गया है। इस दौरान 15 दिनों तक घर में सात्विक माहौल बनाकर रखना अच्छ होता है।  पितृ पक्ष की अवधि में घर में मांसाहारी भोजन न तो पकाना चाहिए और ना ही उसका सेवन करना चाहिए। वैसे लोगों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए जो कि पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करते हैं। इसके अलावा अगर संभव हो सके तो इस दौरान लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

पितृपक्ष के दौरान श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को पूरे 15 दिनों तक बाल और नाखून कटवाने से परहेज करना चाहिए। हालांकि इस दौरान अगर पूर्वजों की श्राद्ध की तिथि पड़ती है तो पिंडदान करने वाला बाल और नाखून कटवा सकता है।

पौराणिक मन्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज पक्षी के रूप में धरती पर पधारते हैं। ऐसे में उन्हें किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं। ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान  पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए।

पितृपक्ष के दौरान सिर्फ मांसाहारी ही नहीं, बल्कि कुछ शाकाहारी चीजों का सेवन करना भी निषेध माना गया है। ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान लौकी, खीरा, चना, जीरा और सरसों का साग खाने से परहेज करना चाहिए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं करनी चाहिए। शादी, मुंडन, सगाई और गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य पितृ पक्ष में निषेध माने गए हैं। दरअसल पितृपक्ष के दौरान शोकाकुल का माहौल होता है, इसलिए इन दिनों कोई भी शुभ कार्य करना अशुभ माना जाता है।


शनिवार, 17 सितंबर 2022

पित्र पक्ष में करे यह कार्य

 DR VIKAS DEEP SHARMA ASTR: जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सद्गति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी 'श्राद्ध पक्ष' ।

श्राद्ध पक्ष का लम्बा पर्व मनुष्य को याद दिलाता है कि 'यहाँ चाहे जितनी विजय प्राप्त हो, प्रसिद्धि प्राप्त हो परंतु परदादा के दादा, दादा के दादा, उनके दादा चल बसे, अपने दादा भी चल बसे और अपने पिताजी भी गये या जाने की तैयारी में हैं तो हमें भी जाना है।'

 *श्राद्ध हेतु आवश्यक बातें* 

जिनका श्राद्ध करना है, सुबह उनका मानसिक आवाहन करना चाहिए । और जिस ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराना है उसको एक दिन पहले न्योता दे आना चाहिए ताकि वह श्राद्ध के पूर्व दिन संयम से रहे, पति-पत्नी के विकारी व्यवहार से अपने को बचा ले । फिर श्राद्ध का भोजन खिलाते समय -

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ॥
( अग्नि पुराण : ११७.२२)

यह श्लोक बोलकर देवताओं को, पितरों को, महायोगियों को तथा स्वधा और स्वाहा देवियों को नमस्कार किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि 'मेरे पिता को, माता को... (जिनका भी श्राद्ध करते हैं उनको) मेरे श्राद्ध का सत्त्व पहुँचे, वे सुखी व प्रसन्न रहें ।'

श्राद्ध के निमित्त गीता के ७वें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर पाठ कर लें और उसका पुण्य जिनका श्राद्ध करते हैं उनको अर्पण कर दें, इससे भी श्राद्धकर्म सुखदायी और साफल्यदायी होता है ।

श्राद्ध करने से क्या लाभ होता है ?
आप श्राद्ध करते हैं तो (१) आपको भी पक्का होता है कि 'हम मरेंगे तब हमारा भी कोई श्राद्ध करेगा परंतु हम वास्तव स में नहीं मरते, हमारा शरीर छूटता शरीर के मरने के बाद भी हमारा अस्तित्व रहता है इसका आपको पुष्टीकरण होता है ।

 (२) देवताओं, पितरों, योगियों और स्वधा-स्वाहा देवियों के लिए सद्भाव होता है ।

(३) भगवद्गीता का माहात्म्य पढ़ते हैं, जिससे पता चलता है कि पुत्रों द्वारा पिता के लिए किया हुआ सत्कर्म पिता की उन्नति करता है और पिता की शुभकामना से पुत्र-परिवार में अच्छी आत्माएँ आती हैं ।

ब्रह्माजी ने सृष्टि करने के बाद देखा कि 'जीव को सुख-सुविधाएँ दीं फिर भी वह दुःखी है' तो उन्होंने यह विधान किया कि एक-दूसरे का पोषण करो । आप देवताओं-पितरों का पोषण करो, देवता पितर आपका पोषण करेंगे । आप सूर्य को अर्घ्य देते हैं, आपके अर्घ्य के सद्भाव से सूर्यदेव पुष्ट होते हैं और यह पुष्टि विरोधियों, असुरों के आगे सूर्य को विजेता बनाती है । जैसे रामजी को विजेता बनाने में बंदर, गिलहरी भी काम आये ऐसे ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं तो सूर्य विजयपूर्वक अपना दैवी कार्य करते हैं, आप पर प्रसन्न होते हैं और अपनी तरफ से आपको भी पुष्ट करते हैं ।

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः । परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥

'तुम इस यज्ञ (ईश्वरप्राप्ति के लिए किये जानेवाले कर्मों) के द्वारा देवताओं को तृप्त करो और (उनसे तृप्त हुए) वे देवगण तुम्हें तृप्त करें । इस प्रकार (निःस्वार्थ भाव से) एक-दूसरे को तृप्त या उन्नत करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे । '(गीता : ३.११)

देवताओं का हम पोषण करें तो वे सबल होते हैं और सबल देवता वर्षा करने, प्रेरणा देने, हमारी इन्द्रियों को पुष्ट करने में लगते हैं । इससे सबका मंगल होता है ।

 DR VIKAS DEEP SHARMA ASTR: आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, पुष्टि, धन-धान्य देनेवाला श्राद्ध - कर्म
(श्राद्ध पक्ष : 10 से 25 सितम्बर) आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को 'पितृ पक्ष' या 'महालय पक्ष' बोलते हैं । आपका एक माह बीतता है तो पितृलोक का एक दिन होता है । साल में एक बार ही श्राद्ध करने से कुल खानदान के पितरों को तृप्ति हो जाती है ।

 *श्राद्ध क्यों करें ?* 

गरुड़ पुराण (१०.५७-५९) में आता है कि 'समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता । पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।'

'हारीत स्मृति' में लिखा है :
न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुषः ।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम् ॥

'जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता ।  लम्बी आयु नहीं होती और किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता (किसी-न-किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है) ।'

महर्षि सुमंतु ने कहा : “ श्राद्ध जैसा कल्याण मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या हो सकता है ! अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए ।"

 *श्राद्ध पितृलोक में कैसे पहुँचता है* ?

श्राद्ध के दिनों में मंत्र पढ़कर हाथ में तिल, अक्षत, जल लेकर संकल्प करते हैं तो मंत्र के प्रभाव से पितरों को तृप्ति होती है, उनका अंतःकरण प्रसन्न होता है और कुल खानदान में पवित्र आत्माएँ आती हैं ।

'यहाँ हमने अपने पिता का, पिता के पिता का और उनके कुल गोत्र का नाम लेकर ब्राह्मण को खीर खिलायी, विधिवत् भोजन कराया और वह ब्राह्मण भी दुराचारी, व्यसनी नहीं, सदाचारी है । 

 *हम श्राद्ध तो यहाँ करें तो पितृलोक में वह कैसे पहुँचेगा* ?'

जैसे मनी ऑर्डर करते हैं और सही पता लिखा होता है तो मनी ऑर्डर पहुँचता है, ऐसे ही जिसका श्राद्ध करते हो उसका और उसके कुल गोत्र का नाम लेकर तर्पण करते हो कि 'आज हम इनके निमित्त श्राद्ध करते हैं' तो उन तक पहुँचता है । देवताओं व पितरों के पास यह शक्ति होती है कि दूर होते हुए भी हमारे भाव और संकल्प स्वीकार करके वे तृप्त हो जाते हैं । मंत्र और सूर्य की किरणों के द्वारा तथा ईश्वर की नियति के अनुसार वह आंशिक सूक्ष्म भाग उनको पहुँचता है ।

 *यहाँ खिलायें और वहाँ कैसे मिलता है ?* 

भारत में रुपये जमा करा दें तो अमेरिका में डॉलर और इंग्लैंड में पाउंड होकर मिलते हैं । जब यह मानवीय सरकार, वेतन लेनेवाले ये कर्मचारी तुम्हारी मुद्रा (करंसी) बदल सकते हैं तो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए जो प्रकृति काम करती है, वह ऐसी व्यवस्था कर दे तो इसमें ईश्वर व प्रकृति के लिए क्या बड़ी बात है ! आपको इस बात में संदेह नहीं करना चाहिए ।