रविवार, 26 दिसंबर 2021

शुभ ऊर्जा के यँत्र ओर कलश

नमस्कार
शुभ ऊर्जा के द्वारा हमने कुल 5 तरह के अलग अलग यँत्र तैयार किये  गए है । जो अनेकों यँत्र, पिरामिड, वास्तु सामग्री , नवरत्न, जड़ी बूटी, ऊर्जा तत्व सामग्री, क्रिस्टल, आदि सामग्री द्वारा निर्मित शुभ ऊर्जा एक सकरात्मक ऊर्जा यँत्र है ।जो नकारात्मकता को समाप्त करके हमारे जीवन मे शुभ ऊर्जा प्रदान करता है । निम्न 5 यँत्र अलग अलग है  ।। सभी यँत्र बॉक्स ओर किट के रूप में तैयार किये गए है।

1 *शुभ ऊर्जा यँत्र* :- यह यँत्र बॉक्स रूप में है इस यँत्र के सकारात्मक प्रभाव के रूप में घर का वास्तु दोष, नजर दोष, ऊपरी बाधा, पित्र दोष, टोना टोटका, भूमि ऊर्जा नवग्रह बाधा, ओर बंधन दोष को दूर करता है । इस यँत्र कि अपनी एक औरा होती है जो उपरोक्त दोषों को शमन करती है ।


2 *शुभ ऊर्जा मंगल कलश* :- व्यक्ति को भवन में सुख मिलेगा या दुःख यह निर्धारण वहाँ की जमीन से किया जाता है। इसीलिये भवन बनाने से पूर्व मंगल कलश स्थापित किया जाता है *शुभ ऊर्जा मंगल कलश*  के रूप में बनाया गया है जिसको नवीन घर के निर्माण के समय भूमि में दबा दिया जाता है । उपरोक्त यँत्र को दवाने से नवीन भूमि  के पूर्व के अगर कोई दोष है तो उसके दुष्प्रभाव को खत्म करके शुभ ऊर्जा प्रदान करता है।


3 *शुभ ऊर्जा मंगल कार्य यँत्र* :--  शुभ ऊर्जा मंगल कार्य यँत्र घर मे जब मंगल कार्य जैसे विवाह, संतान नॉकरी में  बाधा आती है तब इस यँत्र की स्थापना करके पूजा की जाती है जिसके सकारात्मक प्रभाव के रूप में घर मे मंगलीक कार्य शुरू होने लगते है । मंगलीक दोष में यह यँत्र शीघ्र कार्य करता है ।अमंगल को दूर करके मंगल करने वाला शुभ ऊर्जा मंगल यँत्र स्थापित करे।


  *शुभ ऊर्जा मंगल कलश* :- इस मंगल कलश को कन्या के विवाह के समय पिता के द्वारा आशिर्बाद के रूप में बेटी को दिया जाता है । जिसे कन्या अपनी ससुराल में ले जाकर स्थापित करके पूजा करती है तो पिता का आशिर्बाद प्राप्त होता है ।जिसके  फल स्वरूप उंसको ससुराल में सुखी जीवन प्राप्त होता है ।

5 *त्रिशक्ति शुभ ऊर्जा यँत्र*:- यह पॉकेट यँत्र है । जिसको जेब मे या घर मे तकिये के नीचे रखा जाता है । यह यँत्र मानशिक अवसाद , तनाव, हताशा, डिप्रेशन, ओर नेगेटिविटी को कम करने का कार्य  करता है  । इस यँत्र के शुभ प्रभाव से व्यक्ति ऊर्जात्मक बना रहता है और  तनाव  मुक्त रहता है।   वर्तमान में हम जिस हवा रूपी बीमारियों से ग्रसित हो रहे है । त्रिशक्ति पावर यँत्र द्वारा हमे रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ जाती है ।

*संपर्क करे* :- **डॉ विकासदीप शर्मा*
*श्री मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी**
*9425137382
9993462153*


शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप

पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप और उनके पीछे की कहानी*
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हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर मिलती है। आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित 24 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कहानी बताएँगे।
श्री मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी 9993462153
1👉 युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप
महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि - आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी।

2👉 ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप
महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।
3👉 माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप
महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया। तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा। तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

4👉  नंदी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

5👉  कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप
महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।
6👉  उर्वशी का अर्जुन को श्राप
महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

7👉 तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप
शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया। तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है।

8👉 श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप
पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।
ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।

9👉  राजा अनरण्य का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।

10👉  परशुराम का कर्ण को श्राप
महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।

11👉 तपस्विनी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।
12👉  गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप
महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ।

13👉 महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।

14👉 शूर्पणखा का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

15👉 ऋषियों का साम्ब को श्राप
महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।

16👉 दक्ष का चंद्रमा को श्राप
शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी। ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने। तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।

17👉 माया का रावण को श्राप
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया।
इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासना युक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

18👉 शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था।

19👉 ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।

20👉 नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप
शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।

21👉 नलकुबेर का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।
लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।

22👉 श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप
महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

23👉 तुलसी का श्रीगणेश को श्राप
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।

24👉  नारद का भगवान विष्णु को श्राप
शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया। यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया ।
डॉ विकास दीप शर्मा
श्री मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी 
9993462153

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

खर मास 16 12 2021 से 14 01 2022 तक

*खरमास* 

*14 दिसम्बर 2021 से शुरू होगा खरमास*

★  अब कुछ ही दिनों के बाद 14 दिसम्बर 2021 से खरमास आरंभ होने वाला है। 
★  हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। 
★  खरमास को अशुभ माना जाता है।

★  जब सूर्य गोचरवश धनु और मीन में प्रवेश करते हैं तो इसे क्रमश धनु संक्रांति व मीन संक्रांति कहा जाता है। 
★  सूर्य किसी भी राशि में लगभग एक माह तक रहते हैं। सूर्य के धनु राशि व मीन राशि में स्थित होने की अवधि को ही खरमास कहा जाता है।

 
*🌏खरमास शुरू और समाप्त होने की तिथि :-*

•   14 दिसंबर 2021 मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरू हो रहा खरमास।
•    मकर संक्रांति 14 जनवरी 2022 पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन खरमास का समाप्त हो जाएगा।

★  मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2022 को मनाया जाएगा। 
★  मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक महत्व होता है। 
★  इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। 
★  सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही मांगलिक और शुभ कार्य आरंभ हो जाएंगे।
 *डॉ विकासदीप शर्मा* *श्री मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी* 9425137382
9993462153
*🐚खरमास को अशुभ मानने के कारण :-*

एक बार सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्राह्मांड की परिक्रमा कर रहे थे। 
   इस दौरान उन्हें कहीं पर भी रूकने की इजाजत नहीं थी। यदि इस दौरान वो रूक जाते तो जनजीवन भी ठहर जाता। परिक्रमा शुरू की गई,
   लेकिन लगातार चलते रहने के कारण उनके रथ में जुते घोड़े थक जाते हैं, और घोड़ों को प्यास लग जाती है। 
     घोड़ों की उस दयनीय दशा को देखकर सूर्यदेव को उनकी चिंता हो गई। और वो घोड़ों को लेकर एक तालाब के किनारे चले गए, ताकि घोड़ों को पानी पिला सकें। 
     लेकिन उन्हें तभी यह आभास हुआ कि अगर रथ रूका तो अनर्थ हो जाएगा। क्योंकि रथ के रूकते ही पूरा जनजीवन भी ठहर जाता। 
डॉ विकास दीप शर्मा श्री मंशापूर्ण ज्योतिष 9425137382,9993462153
       घोड़ों का सौभाग्य ही था कि उस तालाब के किनारे दो "खर* मौजूद थे। और खर गधे को कहा जाता है। 
      भगवान सूर्यदेव की नजर उन गधों पर पड़ी और उन्होंने अपने घोड़ों को वहीं तालाब के किनारे पानी पीने और विश्राम करने के लिए छोड़ दिया, और घोड़ों की जगह पर खर यानि गधों को अपने रथ में जोड़ लिया। 
      लेकिन खरों के चलने की गति धीमी होने के कारण रथ की गति भी धीमी हो गई। फिर भी जैसे तैसे एक मास का चक्र पूरा हो गया।
       उधर तब तक घोड़ों को काफी आराम मिल चुका था। इस तरह यह क्रम चलता रहता है। 
*हर सौर वर्ष में एक सौर मास खर मास कहलाता है। जिसे मलमास के नाम से भी जाना जाता है।*

*खरमास के उपाय :-*

★  खरमास के महीने में पूजा-पाठ धर्म-कर्म, मंत्र जाप, भागवत गीता, श्रीराम की कथा, पूजा, कथावाचन, और विष्णु भगवान की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है।
★  दान, पुण्य, जप, और भगवान का ध्यान लगाने से कष्ट दूर हो जाते हैं।.
★  इस मास में भगवान शिव की आराधना करने से कष्टों का निवारण होता है।
★  शिवजी के अलावा खरमास में भगवान विष्णु की पूजा भी फलदायी मानी जाती है।
★  खरमास के महीने में सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।
★  ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के लोटे में जल, रोली या लाल चंदन, शहद लाल पुष्प डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। 
*ऐसा करना बहुत शुभ फलदायी होता है।*

धनु संक्रांति खर मास में शुभ कार्य क्यों निषेध है

धनु संक्रांति खर मास में शुभ कार्य क्यों निषेध है
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*ये 10 काम करने की न करें गलती*
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धनु राशि बृहस्पति की आग्नेय राशि है और इसमें सूर्य का प्रवेश विशेष परिणाम पैदा करता है. इस समय ज्योतिषीय कारणों से शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं अतः इसे धनु खरमास भी कहते हैं।

जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे धनु संक्रांति कहा जाता है।

सूर्य का किसी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है और जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे धनु संक्रांति कहा जाता है। धनु राशी बृहस्पति की आग्नेय राशि है और इसमें सूर्य का प्रवेश विशेष परिणाम पैदा करता है। इस समय ज्योतिषीय कारणों से शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं अतः इसे धनु खरमास भी कहते हैं।

*इस समय विवाह क्यों वर्जित होता है?*
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**डॉ विकासदीप शर्मा श्री मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी* 94251373782
9993462153*
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- किसी भी विवाह का सबसे बड़ा उद्देश्य सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

- धनु राशी को सम्पन्नता की राशी माना जाता है।

- इस समय सूर्य धनु राशी में चला जाता है, जिसको सुख समृद्धि के लिए अच्छा नहीं माना जाता।

- इस समय अगर विवाह किया जाए तो न तो भावनात्मक सुख मिलेगा और न ही शारीरिक सुख।

*नया व्यवसाय या कार्य क्यों शुरू न करें* ?
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- धनु खरमास में नया व्यवसाय आरम्भ करना आर्थिक मुश्किलों को जन्म देता है, क्योंकि इस समय बिना चाहे खर्चे काफी बढ़ सकते हैं।

- इस अवधि में शुरू किए हुए व्यवसाय बीच में रुक जाते हैं।

- व्यवसाय में काफी कर्ज हो सकता है और लोगों के बीच में धन फंस सकता है।

मकान बनाने या बेचन की गलती न करें
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- संपत्ति बनाने का उद्देश्य संपत्ति का सुख पूर्वक उपभोग करना है।

- परन्तु अगर इस समय में मकान बनाया जाएगा तो उसका सुख मिल पाना काफी कठिन होगा।

- अगर ऐसा प्रयास किया जाए तो काम बीच में बाधाओं के कारण रुक भी सकता है।

- कभी-कभी दुर्घटनाओं की सम्भावनाएं भी बन जाती हैं।

- इस अवधि में बनाए गए मकान आम तौर पर कमजोर होते हैं और उनसे निवास का सुख नहीं मिल पाता है।

*धनु खरमास में कौन से कार्य कर सकते हैं?*
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- अगर प्रेम विवाह या स्वयंवर का मामला हो तो विवाह किया जा सकता है।

- अगर कुंडली में बृहस्पति धनु राशी में हो तो भी इस अवधि में शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

- जो कार्य नियमित रूप से हो रहे हों उनको करने में भी खरमास का कोई बंधन या दबाव नहीं है।

- सीमान्त, जातकर्म और अन्नप्राशन आदि कर्म पूर्व निश्चित होने से इस अवधि में किए जा सकते हैं।